कहानी : एक बलात्कारी की आत्म-कथा Story In Hindi, Hindi Kahani
तमाम सबूतों और गवाहों के बयानात के मद्देनजर अब जबकि मुझे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सज़ा-ए-मौत का फरमान जारी किया जा चुका है और मैं भी यह मान चुका हूँ कि राष्ट्रपति द्वारा भी मेरी माफी की अपील हमेशाकी तरह देर सवेर अवश्यमेव ठुकरा हीदी जाएगी तो मैं अपनी मर्दानगी या मासूमियत दिखाने के लिए यह बिलकुल भी नहीं कहूँगा कि मुझे कोई अफसोस नहीं है और न यह सफ़ेद झूठ कि मैं बेगुनाह हूँ । जी हाँ मैं हूँ कुसूरवार और शत-प्रतिशत हकदार भी इसी सज़ा का हूँ बल्कि इससे भी यदि कोई बड़ी और भयानक सज़ा होती हो तो उसका .......किन्तु आज से लेकर खुद को फाँसी के फंदे पर लटकाए जाने तक मैं जो कुछ भी आत्मकथा स्वरूप लिख रहा हूँ वह किसी के भी दिल में अपनेप्रति सहानुभूति जाग्रत करने अथवापश्चात्ताप के रूप में न पढ़ा जायेऔर न ही माफीनामा समझा जाये......किन्तु एक बात तय है कि यह जो कुछ भी अपने अंतिम दिनों में व्यक्त करने चला हूँ आप यकीन जाननाकि हर्फ़-दर-हर्फ़ सच है और सच के सिवा कुछ भी नहीं .....और आप खुद ही सोचना कि अब आपमें करुणा जगाकर भी क्या मुझे माफी मिल सकती है ; अथवा मेरी बदनामी शोहरत में बादल जाएगी ?..........नहीं न.......तो इन मोटे मोटे लौह सीखचों के पीछे से मेरा पूरा काला सच हाजिर है –अपने सम्पूर्ण नग्न रूप में.......अतः गुजारिश भी है कि जिन्होने कभी अश्लीलता या कामवासना से नाता नहीं रखा वे इस कथा को न पढ़ें.....च्च...च्च...च्च...
लीजिए मैं तो अभी से उपदेश देने लगा जबकि माँ कसम......चलिए नहीं खातामाँ कसम क्योंकि मैं खाऊँ भी तो आप यकीन क्यों करने लगे न ही हम जैसों का कभीकरना….,मेरा उद्देश्य भूलकरभी उपदेश देना या सलाह देना हरगिज नहीं है.....ये और बात होगी कि मेरी इस घृणास्पद बलात्कारिक कहानी मेंआप स्वयं अनेकानेक सावधानियाँ ढूंढ निकालेंगे किन्तु वह आपका अन्वेषन होगा...मैं तो बस इस सकारात्मक तरीके से टाइम-पास कर रहा हूँ क्योंकि आत्म हत्या के औज़ार भी यहाँ उपलब्ध नहीं हैं किन्तु मौत को सामने देखकर जब तक मेरा माफीनामा रद्द होकर लौटता है और मेरे फांसी पर पूरा दम निकाल जाने तक लटकाए रक्खे जाने की तिथि मुकर्रर होती है –आत्म-मंथन कर यह जानना चाहता हूँ कि मैं गुनाहगार तो हूँ किन्तु कितना ? क्या शत-प्रतिशत.......या समाज की भी इसमें कुछ भूमिका रही है ? खैर । एक बात और कि मैं यह सब बलात्कारियों का प्रतीक या प्रतिनिधि स्वरूप यह नहीं कह रहा बल्कि यह एक अकेले मेरा सच है वरना आप खुद ही सोचिए कि क्या एक छोटी सी कहानी में किसी इकत्तीस वर्षीय रंगीन-मिजाज़ नौजवाँ की आत्म कथा समा सकती है..........?उसके लिए चाहिए एक अति वृहद उपन्यास और जिसके लिए अनिवार्य है एक लंबा शांतिपूर्ण समय और मेरे पास तो आज मरे कल दूसरादिन वाली बात है अतः इसमें आपको वो साहित्य-सैद्धान्तिक सिलसिला भी नहीं मिलेगा और न ही मैं साहित्य की किसी विधा का पुरोधा बनने अथवा मरणोपरांत कीर्ति अर्जन हेतु लिख रहा हूँ ......और अव्वल तो मैं लेखन क्या जानूँ .....और.......भला मौत के साये में अनिवार्य लेखकीय ध्यान लग सकता है ?
यद्यपि सज़ा तो मुझे इस एक बलात्कार और फिर हत्या की मिली है क्योंकि यह साबित हो गया किन्तु वास्तव में मैंने अपने जीवन में अनगिनती बलात्कार किए हैं ये अलग बात है कि वे मामले कभी थाने और अदालत नहीं पहुंचे अथवा खारिज हो गए । आज मैं वही रहस्य बताऊंगा क्योंकि अब मुझे किसका डर...जबकि मौत खुद मैंने टहे दिल से स्वीकार कर ली है और दो बार तो लटका नहीं सकते । सच कहूँ तो दुनिया भर में मीडिया द्वारा मेरी इतनी थू-थू और भर्त्सना हो चुकी है कि मैं खुद भी माफ कर दिए जाने पर शायद शर्मिंदा महसूस करूँ किन्तु मौका कौन छोडता है ?
यौवन किसे नहीं आता और कामेच्छा किसमे जागृत नहीं होती किन्तु इसका नियंत्रण उच्छृंखल और लंपटोंके वश की बात नहीं ...वे प्रकृति की आड़ में अप्राकृतिक दुष्कृत्य किया करते हैं जबकि घोर सामाजिक अथवा धर्म भीरु लोग आत्मनिर्भरता अथवा ब्रह्मचर्य की दम पर बलात्कारों से बचे रहते है और मुझ जैसे नास्तिक , असंयमी , और चरित्र के लिए सर्वथा घातक एकांतवासी ने प्रथम स्खलन को इस धरती का परम-चरमसुख मान लिया ...और यहीं से चालू होता है एक किशोर का बलात्कारी बनने का सफर ।
काश कि उस नाजुक उम्र में कोई यह समझाता कि नियंत्रण कैसे होता है ?किन्तु कौन ? क्या माँ-बाप ? हम उम्र नासमझ दोस्त तो और उकसाते हैं,बिगाड़ते हैं बल्कि चित्र-विचित्र तौर-तरीके सुझाते है _आनंद प्राप्ति के । मैं तो कहूँगा कि इस पर बहुत खुलकर चर्चा होनी थी । मुझे माँ-बाप द्वारा ही समझाया जाना ज्यादा उचित था अथवा स्कूल में शिक्षकों द्वारा.........जबकि वातावरण उस वक्त भी इतना प्रदूषित तो था ही कि छोटे छोटे बच्चे भी शारीरिक सम्बन्धों का अर्थ समझते थे और आज का पर्यावरण तो तौबा-तौबाबेहद भड़काऊ-उकसाऊ है इसमे कोई दो राय नहीं कि बच्चा सिद्धान्त नहीं सीधे प्रेक्टिकल में यकीन रखता है.......खैर । और फिर यह तो नशा है , आसक्ति है , लत है । धीरे-धीरे ज़रूरत बढ्ने लगती है । कम उम्र में शादी हो नहीं सकती फिर इच्छा पूर्ति कैसे हो ?
यह कहानी डॉ हिरालाल प्रजापति के ब्लॉग से अमित शर्मा कोटा द्वारा प्रेषित की गई है
(1)कहानी : एक बलात्कारी की आत्म-कथा - डॉ. हीरालाल प्रजापति
लीजिए मैं तो अभी से उपदेश देने लगा जबकि माँ कसम......चलिए नहीं खातामाँ कसम क्योंकि मैं खाऊँ भी तो आप यकीन क्यों करने लगे न ही हम जैसों का कभीकरना….,मेरा उद्देश्य भूलकरभी उपदेश देना या सलाह देना हरगिज नहीं है.....ये और बात होगी कि मेरी इस घृणास्पद बलात्कारिक कहानी मेंआप स्वयं अनेकानेक सावधानियाँ ढूंढ निकालेंगे किन्तु वह आपका अन्वेषन होगा...मैं तो बस इस सकारात्मक तरीके से टाइम-पास कर रहा हूँ क्योंकि आत्म हत्या के औज़ार भी यहाँ उपलब्ध नहीं हैं किन्तु मौत को सामने देखकर जब तक मेरा माफीनामा रद्द होकर लौटता है और मेरे फांसी पर पूरा दम निकाल जाने तक लटकाए रक्खे जाने की तिथि मुकर्रर होती है –आत्म-मंथन कर यह जानना चाहता हूँ कि मैं गुनाहगार तो हूँ किन्तु कितना ? क्या शत-प्रतिशत.......या समाज की भी इसमें कुछ भूमिका रही है ? खैर । एक बात और कि मैं यह सब बलात्कारियों का प्रतीक या प्रतिनिधि स्वरूप यह नहीं कह रहा बल्कि यह एक अकेले मेरा सच है वरना आप खुद ही सोचिए कि क्या एक छोटी सी कहानी में किसी इकत्तीस वर्षीय रंगीन-मिजाज़ नौजवाँ की आत्म कथा समा सकती है..........?उसके लिए चाहिए एक अति वृहद उपन्यास और जिसके लिए अनिवार्य है एक लंबा शांतिपूर्ण समय और मेरे पास तो आज मरे कल दूसरादिन वाली बात है अतः इसमें आपको वो साहित्य-सैद्धान्तिक सिलसिला भी नहीं मिलेगा और न ही मैं साहित्य की किसी विधा का पुरोधा बनने अथवा मरणोपरांत कीर्ति अर्जन हेतु लिख रहा हूँ ......और अव्वल तो मैं लेखन क्या जानूँ .....और.......भला मौत के साये में अनिवार्य लेखकीय ध्यान लग सकता है ?
यद्यपि सज़ा तो मुझे इस एक बलात्कार और फिर हत्या की मिली है क्योंकि यह साबित हो गया किन्तु वास्तव में मैंने अपने जीवन में अनगिनती बलात्कार किए हैं ये अलग बात है कि वे मामले कभी थाने और अदालत नहीं पहुंचे अथवा खारिज हो गए । आज मैं वही रहस्य बताऊंगा क्योंकि अब मुझे किसका डर...जबकि मौत खुद मैंने टहे दिल से स्वीकार कर ली है और दो बार तो लटका नहीं सकते । सच कहूँ तो दुनिया भर में मीडिया द्वारा मेरी इतनी थू-थू और भर्त्सना हो चुकी है कि मैं खुद भी माफ कर दिए जाने पर शायद शर्मिंदा महसूस करूँ किन्तु मौका कौन छोडता है ?
यौवन किसे नहीं आता और कामेच्छा किसमे जागृत नहीं होती किन्तु इसका नियंत्रण उच्छृंखल और लंपटोंके वश की बात नहीं ...वे प्रकृति की आड़ में अप्राकृतिक दुष्कृत्य किया करते हैं जबकि घोर सामाजिक अथवा धर्म भीरु लोग आत्मनिर्भरता अथवा ब्रह्मचर्य की दम पर बलात्कारों से बचे रहते है और मुझ जैसे नास्तिक , असंयमी , और चरित्र के लिए सर्वथा घातक एकांतवासी ने प्रथम स्खलन को इस धरती का परम-चरमसुख मान लिया ...और यहीं से चालू होता है एक किशोर का बलात्कारी बनने का सफर ।
काश कि उस नाजुक उम्र में कोई यह समझाता कि नियंत्रण कैसे होता है ?किन्तु कौन ? क्या माँ-बाप ? हम उम्र नासमझ दोस्त तो और उकसाते हैं,बिगाड़ते हैं बल्कि चित्र-विचित्र तौर-तरीके सुझाते है _आनंद प्राप्ति के । मैं तो कहूँगा कि इस पर बहुत खुलकर चर्चा होनी थी । मुझे माँ-बाप द्वारा ही समझाया जाना ज्यादा उचित था अथवा स्कूल में शिक्षकों द्वारा.........जबकि वातावरण उस वक्त भी इतना प्रदूषित तो था ही कि छोटे छोटे बच्चे भी शारीरिक सम्बन्धों का अर्थ समझते थे और आज का पर्यावरण तो तौबा-तौबाबेहद भड़काऊ-उकसाऊ है इसमे कोई दो राय नहीं कि बच्चा सिद्धान्त नहीं सीधे प्रेक्टिकल में यकीन रखता है.......खैर । और फिर यह तो नशा है , आसक्ति है , लत है । धीरे-धीरे ज़रूरत बढ्ने लगती है । कम उम्र में शादी हो नहीं सकती फिर इच्छा पूर्ति कैसे हो ?
यह कहानी डॉ हिरालाल प्रजापति के ब्लॉग से अमित शर्मा कोटा द्वारा प्रेषित की गई है
(1)कहानी : एक बलात्कारी की आत्म-कथा - डॉ. हीरालाल प्रजापति
इन पेज पर क्लिक करे
* Page Like
* Job Our Kota
* बेटी बचाओ अभियान
* मैं हु दैनिक भास्कर पाठक
* HARIMOHAN MEHAR
* हमारे पीएम नरेन्दर मोदी
* शक्तिदल