जैसा सोचोगे, वैसा बनोगे.....

अच्छी सेहत के लिए अच्छी सोच जरूरी है। यह सिर्फ कहने या सुनने की बात नहीं है। इंसान अपने दिमाग का सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है। ऐसे में अगर सोच नकारात्मक होगी तो दिमाग भ्रमित हो सकता है। अच्छी सोच से सेहत अच्छी रहती है। ठीक इसके विपरीत बुरी सोच से व्यक्ति हताशा से घिर जाता है।
                                                                                                                                                          दरअसल खुशी से शरीर की धमनियां सजग और सचेत रहती हैं। सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है। चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है। आंखों के नीचे कालिख और समय से पूर्व झुर्रियां इसी बात का सबूत हैं। शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है।

                                                                                                                                                                धूम्रपान, धूल, धुएं के अलावा अस्वस्थ सोच से इंसान दिन-प्रतिदिन पीड़ित हो रहा है। मनुष्य अपने दुःख से दुःखी नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा दुःखी है।उसकी यह सोच अनेक रोगों को बढ़ा देती है। हमारे सोचने के ढंग को हमारा व्यक्तित्व भलीभांति परिभाषित कर देता है, क्योंकि चेहरा व्यक्तित्व का आईना है।
                                                                                                                                                                 शरीर पर रोगों के प्रभाव औरसोच का गहरा संबंध है। अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झड़ने लगते हैं शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है।इसलिए दोस्तों मुस्कान को बनाएं अपना साथी और हो जाएं ना सिर्फ सेहतमंद और खूबसूरत बल्कि सबके मनपसंद भी


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