एक परिवर्तन से JOB होगी आपकी जेब मे
हर व्यक्ति की मूलभूत चाहत होती है कि उसके जीने के मायने हों। वहइतना सक्षम हो कि न केवल अपनी वरनअपने परिजनों-परिचितों की भी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं कीपूर्ति कर सके। समाज में उसका सम्माननीय स्थान हो। उसकी राय हरछोटे-बड़े काम में ली जाए। वह लोगों की सोच को अपनी इच्छानुसार प्रभावित कर सके।
सीधे शब्दों में कहें तो हरव्यक्ति चाहता है कि उसके पास काम, दाम, नाम, सम्मान और कमान सभी हो। जिस व्यक्ति के पास ये उपलब्धियां हों उसे सफल कहा जा सकता है। सफल का अर्थ है- स+फल= फल सहित, अर्थात उपलब्धि सहित, महत्व सहित। सफलता का अर्थ डिग्री पाना, नौकरी लगना, पैसा कमाना मात्र नहीं है। व्यक्ति की सामाजिक हैसियतएवं उपयोगिता भी उसकी सफलता की कसौटीहै। इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति सफल होना चाहता है तो उसका उपरोक्त पांच उपलब्धियों पर अधिकार होना चाहिए।
हम देखते हैं हमारे चारों ओर ऐसे कई लोग हैं, जो सफलता के लिए कठोर श्रम करते हैं पर सफलता कुछ गिने-चुने लोगों को ही मिलती है। हम इसे तकदीर का खेल कहते हैं। पर यदि विश्लेषणात्मक नजरिए से हमदेखें तो पाएंगे कि सफल एवंअसफल व्यक्तियों में एक मूलभूत अंतर है। यद्यपि कठोर श्रम दोनों करते हैं, पर सफल व्यक्तियों के पास एक स्पष्ट दृष्टिकोण होता है। वे अंधेरे में तीर नहींचलाते। उन्हें प्रस्तुत समस्या की समझ होती है और उसके निदान की एक तर्कपरक, व्यावहारिक योजना होती है।
जहां दरवाजों से पहुंचा जा सकता है, वहां दीवारों में सिर टकराकर रास्ता बनाने की कोशिश करना कठोर श्रम काउदाहरण हो सकता है, पर साथ ही यह उदाहरण है वज्र मूर्खता का। कुछ सूत्र हैं जो उन दरवाजों की तरह हैं जिनसे सफलता के सिंहासन तक पहुंचा जासकता है। ये सूत्र हैं-
हमेशा खुश रहें दूसरों को भी खुश रखें
यह सूत्र जितना नैतिक एवं मानवीय मूल्य रखता है, उतनाही वैज्ञानिक मूल्य भी रखता है। मनोविज्ञान के अनुसार हम अपना श्रेष्ठ तभी दे सकते हैं या अपनी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग तभी कर सकते हैं, जब हम सौहार्दपूर्ण तनावरहित वातावरण में काम कर रहे हों। जिस प्रकार जहां प्रकाश हो वहां अंधकार नहीं हो सकता, उसी प्रकार जहां खुशी हो, प्रसन्नता होवहां तनाव नहीं हो सकता।
कार्य पूर्ण लगन और उत्साह से करें
सफलता के मार्ग पर व्यक्ति की गाड़ी तभी तक चलती है, जब तक इसमें लगन एवं उत्साह काईंधन होता है। लगन एवं उत्साह उत्पन्न होता है समर्पण एवं चाहत से। सफलता की पहली शर्त, पहला सूत्र यह है कि सफलता की ऐसी चाहतहोनी चाहिए जैसे जीवन के लिए प्राणवायु की। सफलता का रहस्य ध्येय की दृढ़ता में है।
समय के पाबंद रहें
समय की महत्ता दर्शाते ढेरों कहावतें, मुहावरे दुनिया की लगभग हर भाषा मेंमिल जाएंगे। यह सत्य सभी मानेंगे कि समय अपनी चाल सेचलता है नधीमा न तेज। समय उनके लिए अच्छा चलता प्रतीत होता है, जो समय के साथ चलते हैं और उनके लिए खराब चलता है, जो समय से पीछे चलते हैं या तेज भागनेकी कोशिश करते हैं। जब तक समय प्रबंधन (टाइम मैनेजमेंट) नहीं होता, तब तक समय हमारे नियंत्रण के बाहर चलता रहेगा। अतः दीर्घसूत्रता या काम का आज-कल पर टालमटोल नहीं होना चाहिए।
रहें सचेत एवं जागरूक
सिद्धांततः जीवन में वही सबसे अधिक सफल व्यक्ति है, जो सबसे अधिक जानकार है। जोक्षेत्र हमारी दृष्टि परिधि में होता है हम साधारणतः उसी के प्रति सचेत एवं जागरूक होते हैं। यहीबात हमारे दृष्टिकोण यानजरिए के बारे में भी सत्य है। हमारा कार्यक्षेत्र एवं नियंत्रण क्षेत्र बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि हम अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाएं। अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का तरीका है अपने आंख-कान खोलकर रखना, बुद्धि को सूक्ष्म और हृदय को विशाल बनाना।
सकारात्मक दृष्टिकोण रखें
अंधेरे में रास्ता दिखाने हेतु एक दीपक पर्याप्त होता है। आशावाद के जहाज परचढ़कर हम मुसीबतों एवं समस्याओं के तूफानों से उफनते असफलताओं के महासागरको भी पार कर सकते हैं।
अपनी क्षमताओं और कमजोरियों को पहचानें
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमजोरियां होती हैं। शतरंजके खेल की तरह हमें हर कदम सोच-समझकर अपनी ताकत एवं सीमाओं का आकलन करते हुए उठाना चाहिए। हां, सावधानी शतरंज के खेल से भी अधिक रखनी चाहिए, क्योंकि जीवन कोई खेल नहीं है।
अपनी हार की संभावना समाप्त कर दें
जीत या सफलता सुनिश्चित करने का तरीका है हार की संभावना समाप्त कर देना। सफलता की तैयारी का महत्वपूर्ण भाग है उन कारकों को पहचानकर मूल से समाप्त कर देना जिनसेअसफलता आ सकती है। ये वे कारक हैं, जो आपकी तैयारी की कमजोर कड़ी हैं। ये वे कारक हैं, जो लक्ष्य से आपका ध्यान विचलित कर सकते हैं। ये वे कारक हैं जिनका आपका प्रतिद्वंद्वी लाभ उठा सकता है। पराजय से बचना विजय ही को निमंत्रण है। नुकसानी की संभावना समाप्त होने पर ही नफे की शुरुआत है। इसी तरह असफलता की संभावना से रहित तैयारी ही सफलता की गारंटी है।
कार्यों से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है न कि महज शब्दों से
व्यक्ति का आचरण एवं उसके कर्म ही उसकी पहचान होते हैं। यदि हम दूसरों के हृदयमें स्थायी जगह चाहते हैं तो इसका आधार हमारे ईमानदारीपूर्ण कर्मही हो सकते हैं। महज शब्दों द्वारा अपनत्व बताना रेत पर बनी लकीरों की तरह होता है जिन्हें हर आती-जाती सागर की लहर बनाती-मिटाती रहती है। पर कर्म पाषाण पर उकेरी आकृति की तरह होता, जो एक स्थायी स्मृति बन जाता है।
ईमानदारी और उदारता को अपनी पहचान बनाएं
कोई भी सामाजिक गतिविधि जनसहयोग के बगैर पूर्ण नहीं हो सकती। लोग तभी हमारे साथ रहेंगे जब उन्हें हमारी ईमानदारी पर भरोसा होगा और हमारा साथउन्हें गरिमापूर्ण महसूस हो। बेईमानी, भय और उपेक्षा की नींव पर हमसहयोग की इमारत खड़ी नहीं कर सकते।
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