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Showing posts from September, 2013

भगवान गणेश

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एक बार भगवान गणेश बालक बन गए। उसके एक हाथ में चम्मच भर दूध था और दूसरी हथेली में एक चावल। घर-घर जाता और कहता ‘मेरे लिए खीर बना दो’। चम्मच भर दूध और एक चावल देख कर घर की औरतों की हंसी नही रुकती। वे कहती इतने में क्या खीर बनेगी? बालक ज्यादा हठ करता तो कोईफुसला कर टाल देती तो कोई क्रोधित होकर उसे घर से निकाल देती। सुबहसे शाम होगई,बालक के लिए खीर बनाने को कोई तैयार नहीहुआ। सांझ पड़े बालक बने गणेश एक कुटिया मे पहुंचे, जहां एक वृद्ध महिला रहती थी। बालक ने वृद्धा से भी यही विनती करते हुए कहा, ‘मां मेरे लिए खीर बना दो, महल-भवन घूम आया, मेरे पास चावल भी है और दूध भी, पता नही खीर बनाने में कितनी मेहनत लगती है कि सामान देने के बाद भी कोई नहीं बनाता।’ वृद्ध महिला ने बालक को प्यार से पुचकारते हुए कहा,‘अरे मेरे लाडले! ला मैं बना देती हूं तेरे लिए खीर।’ वृद्द महिलाने अपनी बहू से कहा ‘छोटी कड़ाही लाना, मैं इस बालक के लिए खीर बना दूं।’ बालक ने अब एकनई अनूठी जिद बांध ली कि‘घर में जो सबसे बडी कड़ाही हो, खीर उसी में बनाओ। वृद्धा ने यह जिद भी मानी और सबसे बडे कड़ाही मे खीर बनाने की त

एक दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी-

 एक दुकान में खरीददारी कर रहा था, तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक ५-६ साल के लड़के से बात करते हुए देखा | कैशियर बोला:"माफ़ करना बेटा, लेकिन इस गुड़िया को खरीदने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|"फिर उस छोटे-से लड़के ने मेरी ओर मुड़ कर मुझसे पूछा''अंकल, क्या आपको भी यही लगता है कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?''मैंने उसके पैसे गिने और उससे कहा:"हाँ बेटे, यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं"| वह नन्हा- सा लड़का अभी भी अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ा था | मुझसे रहा नहीं गया | इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे पूछा कि यह गुड़िया वह किसे देना चाहता है? इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो गुड़िया है - जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे, उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहता है |"यह गुड़िया पहले मुझे मेरी मम्मी को देना है, जो कि बाद में जाकर मेरी बहन को दे देंगी"| यह कहते-कहते उसकी आँखें नम हो आईं थीं | "मेरी बहन भगवान के घर गयी है...और मेरे पापा कहते है

गाँव का सरपंच

एक बार मुझे मेरे गाँव का सरपंच बना दिया गया.. गाँव वालो ने सोचा की छोरा पड़ा लिखा है..समझदार है, अगर ये सरपंच बन गया तो गाँव की भलाई के लिए काम करेगा.. मौसम बदला, सर्दियों के आने के महीने भर पहले गाँव वालो ने मुझसे पूछा की - सरपंच साहब इस बार सर्दी कितनी तेज पड़ेगी.. मैंने गाँव वालों से कहा की मैं आपको कल बताऊंगा.. मैं तुरंत ही शहर की और निकल गया..वहा जाकर मौसम विभाग में पता किया तो मौसम विभाग वाले बोले - की सरपंच साहब इस बार बहुत तेज सर्दी पड़ने वाली है.. मैंने भी दुसरे दिन गाँव में आकर ऐसा ही बोल दिया.. गाँव वालो को विश्वास था की अपने सरपंच साहब पढ़े लिखे हैं..शहर से पता करके आये हैं तो सही कह रहे होंगे..गाँव वालो की नजर में मेरी इज्जत और बढ़ गयी.. तेज सर्दिया पड़ने की बात सुनकर गाँव वालो ने सर्दी से बचने के लिए लकडिया इक्कठी करनी शुरू कर दी. महीने भर बाद जब सर्दियों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा तो गाँव वालो ने मुझसे फिर पूछा..मैंने उन्हें फिर दुसरे दिन के लिए टाला..और शहर के मौसम विभाग में पहुँच गया.. मौसम विभाग वाले बोले की सरपंच साहब आप चिंता मत करो इस बार सर्दियों

सफलता के पांच मंत्र5 Steps To Success सफलता के पाँच कदम

1- किस्मत की बात भूलजाएं, करें इरादा पक्का--- जीवन में कुछ बातें या घटनाएं संयोगवश हो सकती हैं। लेकिन आप अगर इस इंतजार में रहेंगे कि सब कुछ अपने आप अकस्मात ही आपकोहासिल होगा, तो शायद आप सारी जिंदगी इंतजार ही करते रह जाएंगे, क्योंकिसंयोग हमेशा तो नहीं हो सकता। यहां तक कि भौतिक विज्ञान की क्वांटम थ्योरी भी यही कहती कि अगर आप असंख्य बार तक कोशिश करते रहेंगे, तो एक दिन टहलते हुए दीवार के बीच से भी निकल सकते हैं। आपके बार बार करने से कणों में स्पंदन होतारहेगा, जिसकी वजह से शायद दीवार के बीच से निकल पाना भी संभव हो जाए। लेकिन जब तक आप इस अवस्था को हासिल करेंगे,आपकी खोपड़ी फट चुकी होगी। तो जब तक आप किसी संयोग का इंतजार करते रहेंगे, आप व्यग्र रहेंगे। लेकिन जब आप पक्के इरादे के साथ अपनीक्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ेंगे, तब यह बात मायने नहीं रखती कि क्या हुआ और क्या नहीं हुआ। आपके साथजो भी होगा कम से कम वह आपके वश में होगा। एक सुकून का जीवन होगा। 2- अपनी विफलताओं से निराश न हों--- लक्ष्य के प्रति समर्पित इंसान के लिए विफलता जैसी कोई चीजनहीं होती। अगर एक दिन में आप

अच्छी परवरिश के 10 नुस्खे Achhi Parvarish Kai 10 Nuskhe

सही परवरिश के लिए हालात के मुताबिक समझ-बूझ की ज़रूरत होती है। सब बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं हो सकता। चाहे बच्चों के ख्याल रखने की बात हो, प्यार जताने की होया फिर सख्ती बरतने की; हरबच्चे के साथ अलग ढंग से पेश आने की जरूरत होती है। मान लीजिए मैं नारियलके बाग में खड़ा हूं और आपमुझसे पूछें, “एक पौधे को कितना पानी देना होगा?” तो मेरा जवाब होगा, “एक पौधे को कम-से-कम पचास लीटर।” घर जाने के बाद अगर आप अपने गुलाब के पौधे को पचास लीटर पानी देंगे तो वह मर जाएगा। आपको देखना होगा कि आपके घर में कौन-सा पौधा है और उसकी क्या ज़रूरतें है। 1 बच्चा आपकी खुशकिस्मती है-- आप खुशकिस्मत हैं कि खुशियों की पोटली के रूप में एक बच्चा आपके घर में आया है। ना तो बच्चे आपकी जायदाद हैं और ना आप उनके मालिक। बस उनको पालते-पोसते बड़ा होते देखिए औरखुश रहिए। उनको अपने आने वाले कल की जमा-पूंजी मत समझिए। 2 जो बनना चाहें बननेदें--- उनको जो बनना है बनने दें। जिंदगी की अपनी समझ के मुताबिक उनको ढालने कीकोशिश न करें। जरूरी नहींकि आपने अपनी जिंदगी में जो किया वही आपका बच्चा भी करे। बच्चे को ऐसा कुछ करना चाहिए जिसके बारे म

सुकरात और आइना Sukrat aur Aaina

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वास्तविक सौन्दर्य हर सुबह घर से निकलने के पहले सुकरात आईने के सामने खड़े होकर खुद को कुछ देर तक तल्लीनता से निहारते थे एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा. आईने में खुद की छवि को निहारते सुकरात को देख उसके चहरे पर बरबस ही मुस्कान तैर गई. सुकरात उसकी और मुड़े और बोले, " बेशक तुम यही सोचकर मुस्कुरा रहे हो न की यह कुरूप बूढा आईने में खुद को इतनी बारीकी से क्योंदेखता है? और पता है मैं ऐसा हर दिन हीकरता हूँ." शिष्य यह सुनकर लज्जित हो गया और सर झुकाकर खडा रहा. इससे पहले की वह माफी मांगता, सुकरात ने कहा, " आईने में हर दिन अपनी छवि देखने पर मैं अपनी कुरूपता के प्रति सजग हो जाता हूँ. इससे मुझे ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिलाती है जिसमें मेरे सद्गुण इतने निखरे और दमकें की उनके आगे मेरे मुखमंडल की कुरूपता फिकी पड जाये शिष्य ने कहा, "तो क्या इसका अर्थ यह है की सुन्दर व्यक्तियों को आइने में अपनी छवि नहीं देखनी चाहिए/" "ऐसा नहीं है" सुकरात ने कहा, "जब वे स्वयं को आईने में देखें तो यह अनुभव करें की उनके विचार , वाणी और क

कैसे प्राप्त करें खुशी kaise prapt karai khushi

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वर्तमान युग में हर मनुष्य धन इकट्ठा करने की दौड़ में शामिल हो गया है। वह सिर्फ सांसारिक सुख खोजने में लगा है। भौतिक वस्तुएं एकत्रित करने में जुटा है। हर मनुष्य यही सोचता है कि थोड़ा अच्छा धन इकट्ठा कर लूं। अपने व्यापार को आगे बढ़ा लूं, फिर मेरे पास सबकुछ होगा। वह मानता है कि परमात्मा को तो कभी भी प्राप्त किया जा सकता है, आज मैंअपनी सारी दुनिया भर की जरूरते पूरी कर लूं। फिर भगवान को भी मना लूंगा, लेकिन वह इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं देना चाहता कि ऐसा करते-करते ही एक दिन बूढ़ा हो जाएगा, उसका शरीर, तन-मन सबकुछ साथ छोड़ने लगेगा। तब वह भगवान को पानेलायक भी नहीं रह पाएगा। आज का मनुष्य धन जोड़ने के चक्कर में जिस भगवान को पाकर सब कुछ पाया जा सकता है, उसे छोड़ता जा रहा है और जिस धन को पाकर इंसान सब कुछ खो देता है उसको इकट्ठा करने में लग गया है। लेकिनकुछ ऐसा भी हैं जिनको अपनाकर आपअपनी खुशियों को कायम रखते हुएईश्वर को पा सकते है। * जीवन में कभी भी खुद की खुशी के लिए माता-पिता को दुखी न करें। * धन के पीछे न भागकर अपने परिवार व बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारें। * खुशी पाने के लिए

जीवन में सफलता के सात नियम

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जीवन में सफलता हासिल करने का वैसे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं है लेकिन मनुष्य सात आध्यात्मिक नियमों को अपनाकर कामयाबी के शिखर को छू सकता है। जोला कैलीफोर्निया में “द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग” के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक “सफलता के सात आध्यात्मिक नियम” में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा, मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांतिआवश्यक है।           “एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड” और “क्वांटम हीलिंग” जैसी 26 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डा.चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामर्थ्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।  पहला नियम: विशुद्ध सामर्थ्य का पहला नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है. प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय क