एक बेटे का पछतावा
एक धनी व्यक्ति की माँ अक्सर बीमार
रहती थी। माँ रोज बेटे-बहू को कहती थी कि बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चल। बेटा भी रोज पत्नी को कह देता,
"माँ को ले जाना, मैं तो फैक्टरी के काम में व्यस्त रहता हूँ। क्या तुम माँ का चेकअप नहीं करा सकती हो?"
पत्नी भी लापरवाही से उत्तर दे देती,
"पिछले साल गई तो थी, डॉक्टर ने कोई
ऑपरेशन का कहा है। जब तकलीफ होगी ले जाना"और वह अपने काम में लग जाती।
बेटा भी ब्रीफकेस उठाकर चलता हुआ बोल जाता कि"माँ तुम भी थोड़ी सहनशक्ति रखा करो.."
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता।
गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए
देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य
दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम
को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर
जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने
कहा"साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं.."
धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा,
"क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?"
वह डरकर बोला,"वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा,"बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो..."
तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले
गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।"
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन
रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा।
जैसे ही अस्पताल के रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ।
"सलाम साहब"
एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
"अरे तुम वही गरीब लड़के हो?"
और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी।
धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा,"अरे तुम
यहाँ, क्या बात है?"
लड़का बोला,"साहब,मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था."
और ऊपर हाथ करके बोला,
"भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई।आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?"
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो।
'हाँ'! कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया।
वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
"ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी"
कहते हुए डॉक्टर आगे
निकल गए।
वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी
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रहती थी। माँ रोज बेटे-बहू को कहती थी कि बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चल। बेटा भी रोज पत्नी को कह देता,
"माँ को ले जाना, मैं तो फैक्टरी के काम में व्यस्त रहता हूँ। क्या तुम माँ का चेकअप नहीं करा सकती हो?"
पत्नी भी लापरवाही से उत्तर दे देती,
"पिछले साल गई तो थी, डॉक्टर ने कोई
ऑपरेशन का कहा है। जब तकलीफ होगी ले जाना"और वह अपने काम में लग जाती।
बेटा भी ब्रीफकेस उठाकर चलता हुआ बोल जाता कि"माँ तुम भी थोड़ी सहनशक्ति रखा करो.."
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता।
गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए
देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य
दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम
को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर
जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने
कहा"साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं.."
धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा,
"क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?"
वह डरकर बोला,"वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा,"बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो..."
तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले
गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।"
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन
रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा।
जैसे ही अस्पताल के रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ।
"सलाम साहब"
एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
"अरे तुम वही गरीब लड़के हो?"
और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी।
धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा,"अरे तुम
यहाँ, क्या बात है?"
लड़का बोला,"साहब,मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था."
और ऊपर हाथ करके बोला,
"भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई।आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?"
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो।
'हाँ'! कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया।
वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
"ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी"
कहते हुए डॉक्टर आगे
निकल गए।
वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी
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